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Best of Bhagavad Gita Quotes |  Part 2 | Karma Yoga O my dear Krishna, You are the friend of the distressed and the source of  creation. You are the master of the of whole universe.  I offer my  respectful obeisances unto You. लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ । ज्ञानयोगेन साङ्‍ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्‌ ॥ loke ’smin dvi-vidhä niñöhä purä proktä mayänagha jïäna-yogena säìkhyänäà karma-yogena yoginäm हे निष्पाप! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा (साधन की परिपक्व अवस्था अर्थात पराकाष्ठा का नाम 'निष्ठा' है।) मेरे द्वारा पहले कही गई है।  उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से (माया से उत्पन्न हुए सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरतते हैं, ऐसे समझकर तथा मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाली सम्पूर्ण क्रियाओं में कर्तापन के अभिमान से रहित होकर सर्वव्यापी सच्चिदानंदघन परमात्मा में एकीभाव से स्थित रहने का नाम 'ज्ञान योग' है, इसी को 'संन्यास', 'सांख्ययोग' आदि नामों से कहा गया है।)
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Best of Bhagavad Gita Quotes | Part 1| Sankhya Yoga O  my dear Krishna, You are the friend of the distressed and the source of  creation. You are the master of the of whole universe.  I offer my  respectful obeisances unto You. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |  मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ||४७||  karmaëy evädhikäras te mä phaleñu kadäcana mä karma-phala-hetur bhür mä te saìgo ’stv akarmaëi तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं |  इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो  ||  You have a right to perform your prescribed duty, but you are not entitled to the fruits of action. Never consider yourself the cause of the results of your activities, and never be attached to not doing your duty. ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------ योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय | सि